महाभारत खंड - 1 युद्ध के बीज – 15

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देवव्रत को ब्रह्ममुहूर्त में ही जागने की आदत थी दैनिक क्रिया के उपरांत पूजा एवं तत्पश्चात व्यायाम का आरंभ होता व्यायाम के उपरांत धनुर्विद्या एवं अन्य अस्त्रशस्त्रों का अलगअलग दिन अभ्यास नियत था आज मल्लयुद्ध का अभ्यास चल रहा था देवव्रत की विशेषता थी कि वह एक साथ चार योद्धाओं  के साथ अभ्यास करते थे चार गठे हुए एवं अत्यंत दीर्घ शरीर वाले योद्धा देवव्रत से भिड़े हुए थे अखाड़े की मिट्टी से सने देवव्रत ने सामने से आते दो योद्धाओं के बीच से तीव्र गति से गुजरते हुए एक के दाहिने एवं दूसरे के बाएँ  हाथ को को ज़ोर का झटका दिया दोनों योद्धा असंतुलित होकर विपरीत दिशा में गिर पड़े तीसरे योद्धा से थोड़ा आगे निकलकर उसकी छाती को अपनी भुजा में समेटते हुए उसके दोनों पैरों को अपने पैरों से पीछे से धक्का दिया और वह भी भूमि पर चित्त गिर पड़ा चौथे योद्धा ने शीघ्र ही आक्रमण किया देवव्रत ने उसकी हथेलियों को अपनी हथेलियों से पकड़ लिया दोनों एक दूसरे पर बल लगाने लगे यह अभ्यास चल ही रहा था कि तभी एक तीव्र गति से आते अश्व की हिनहिनाहट से दोनों योद्धाओं का ध्यान उस ओर गया यह एक संदेशवाहक था उसके अश्व पर लगी ध्वजा से यह पता चल रहा था कि सूचना अत्यंत आवश्यक थी देवव्रत अभ्यास बीच में ही रोककर उस ओर बढ़े संदेशवाहक ने युवराज  का अभिवादन किया एवं बिना समय व्यर्थ किए बोल पड़ा

युवराज ! उत्तरपूर्वी सीमा की ओर से गन्धर्वों ने राज्य पर आक्रमण कर दिया है गंधर्वराज चित्रांगद की  सेना तीव्र गति से हमारी ओर बढ़ रही है मैं सूचना लेकर महाराज के कक्ष की ओर गया था किन्तु , वहाँ ज्ञात हुआ की वह बिना किसी सूचना के कहीं प्रस्थान कर चुके हैं अतः प्रधान अमात्य ने मुझे आपके पास भेजा है

ऐसे समय में महाराज की अनुपस्थिति चिंताजनक है किन्तु , उससे भी आवश्यक है - तत्काल सेना को लेकर उत्तरपूर्वी सीमा की ओर प्रस्थान करना संदेशवाहक ! जाकर सीमा पर उपस्थित योद्धाओं को सूचित करो कि मैं सेना लेकर शीघ्र ही वहाँ उपस्थित हो रहा हूँ

संदेशवाहक ने प्रस्थान किया सेना को तैयार होने का आदेश देकर युवराज शीघ्र ही शस्त्रागार की  ओर चल पड़े

अस्त्रशस्त्रों से सुसज्जित होकर युवराज देवव्रत के नेतृत्व में सेना ने उत्तरपूर्वी सीमा की ओर प्रस्थान किया हालांकि तैयारी के लिए यथोचित समय नहीं मिला था फिर भी देवव्रत के नेतृत्व में सेना में पूरा आत्मविश्वास था सीमा पर पहुँचते ही वहाँ उपस्थित सैनिकों ने हस्तिनापुर के जयकारे लगाए गन्धर्वों की सेना वहाँ से लगभग एक कोस की दूरी पर ही थी देवव्रत का आगमन सही समय पर हुआ था   देवव्रत ने सेना को आगे बढने का आदेश दिया जब गन्धर्वों की सेना कुछ ही दूरी पर रह गयी , देवव्रत ने हस्तिनापुर की सेना को ठहरने का संकेत किया एवं धनुष से एक बाण छोडा जो सीधा गंधर्वराज चित्रांगद के रथ के आगे जाकर भूमि में धँस गया यह विपक्षी की ओर से वही रुक जाने की चेतावनी थी चित्रांगद ने सेना को रुकने का आदेश दिया

देवव्रत ने उच्च स्वर में कहा

बिना सूचना के आक्रमण करना कायरों का कार्य है और गंधर्वराज से ऐसी अपेक्षा थी

देवव्रत के स्वर में उपहास था चित्रांगद ने तत्क्षण उत्तर दिया

वीर सेना के आक्रमण की सूचना की प्रतीक्षा नहीं करते योग्य राजा वो होते हैं जिनके पास सीमा पर होती हर हलचल की सूचना रहती हो ऐसे राजा को सूचना  भेजने की कोई आवश्यकता नहीं वैसे भी तुम बिना सूचना के ही सही समय पर यहाँ उपस्थित हो किन्तु , स्मरण रहे ! युद्ध लड़ना बालकों का कार्य नहीं ! मैं अगर गलत नहीं तो शायद तुम ही युवराज देवव्रत हो तुम्हारे पिता क्या मुझसे भयभीत हो गए जो युद्ध करने के लिए एक बालक को भेज दिया एवं स्वयं प्राण बचाकर कहीं छुप गए

चित्रांगद के कटु वचन देवव्रत के हृदय को बेध गए देवव्रत ने कहा

गंधर्वराज ! मेरे पिता भयभीत नहीं हुए उन्हे ऐसा लगता है कि आपके लिए तो एक बालक ही यथेष्ट  है ऐसे तुच्छ राजा से युद्ध के लिए हस्तिनापुर के महाराज के आने की कोई आवश्यकता नहीं

तो फिर ठीक है युवराज ! लगता है शांतनु को शोक समाचार सुने अधिक समय हो चुका है मेरी तरफ से उन्हे पुत्रशोक का उपहार अवश्य मिलेगा

इतना कहकर गंधर्वराज ने अपना शंख बजाया यह युद्ध की उद्घोषणा थी प्रत्युत्तर में देवव्रत ने भी अपना शंख बजाया शंख बजने के साथ ही एक आश्चर्यजनक कार्य हुआ युद्धक्षेत्र तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा था सिर्फ एक ओर से ही यह खुला था जिधर से हस्तिनापुर की सेना का आगमन हुआ था शंख के बजने के साथ ही हस्तिनापुर की सेना के दाहिने एवं वाम भाग में स्थित पहाड़ियों से बाणों की वर्षा होने लगी ये बाण आकार में अत्यंत दीर्घ थे निश्चय ही ये किसी यंत्र से चलाये गए थे क्षण भर में ही हस्तिनापुर की सेना चारों ओर से बाणों की सीमारेखा से घिर गयी देवव्रत कुछ सोचते इससे पहले ही एक अग्निबाण ने आकर उस बाणों की सीमारेखा में अग्नि प्रज्वलित कर दी उन दीर्घ बाणों को ज्वलनशील पदार्थ से बनाया गया था सेना पूरी तरह से अग्नि से घिर चुकी थी इतने में आकाश से कुछ मिट्टी के पात्र गिरने लगे मिट्टी के पात्रों के भूमि पर गिरते ही वे फूटने लगे एवं उनसे एक द्रव निकलकर बहने लगा उस द्रव से अत्यंत तीक्ष्ण गंध रही थी देवव्रत ने उस गंध को पहचान लिया यह एक अत्यंत ज्वलनशील द्रव था अर्थात पूरी सेना को जलाकर भस्म करने का षडयंत्र रचा गया था देवव्रत ने बिना एक क्षण भी गँवाए एक बाण आकाश की ओर छोड़ा यह मेघबाण था तत्क्षण आकाश से वर्षा होने लगी इस वर्षा ने गंधर्वराज की योजना पर पानी फेर दिया देवव्रत ने सेना को तीन भागों में विभाजित होने का संकेत दिया सेना का एक भाग दाहिनी ओर , दूसरा भाग बायीं ओर एवं तीसरा भाग देवव्रत के पीछे गया अर्थात युद्ध तीन ओर से लड़ा जाना था देवव्रत के धनुष से अगला बाण उस सीमारेखा से जा टकराया बाणों की वह सीमारेखा छिन्न  – भिन्न हो गयी हस्तिनापुर की सेना गंधर्वराज की सेना से कई गुना बड़ी थी तीन भागों में विभाजित होने पर भी गन्धर्वों पर भारी पड़ रही थी गंधर्वराज की योजना असफल हो चुकी थी देवव्रत के बाणों से गन्धर्वों की सेना में हाहाकार मचा था देवव्रत का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए गंधर्वराज ने एक बाण रथ की ओर ध्वजा पर चलाया इससे पहले की वह बाण अपने लक्ष्य पर पहुँचता देवव्रत ने उसे बीच में ही खंडित कर दिया इतने में एक सनसनाता हुआ बाण गंधर्वराज चित्रांगद के धनुष पर लगा और वह बीच से खंडित हो गया चित्रांगद ने दूसरा धनुष लेना चाहा लेकिन उसकी भी वही गति हुई देवव्रत के बाणों की तीव्र गति के आगे चित्रांगद विवश से दिखे इतने में एक बाण आकर चित्रांगद  के बाएँ  कंधे पर लगा रक्त फूट पड़ा फिर अगला बाण दाहिने कंधे पर गंधर्वराज को मृत्यु निकट दिखने लगी उनकी सेना में भी भगदड़ मच चुकी थी सेना ने पीछे की ओर भागना प्रारम्भ कर दिया चित्रांगद ने सारथी को संकेत किया सारथी ने रथ को पीछे की ओर मोड दिया और रथ द्रुत गति से भागने लगा देवव्रत ने भी अपने रथ को चित्रांगद के पीछे दौड़ा दिया वो तीव्र गति से पीछा करने लगे गंधर्वराज के रथ ने पर्वतों के मध्य बने मार्ग से भीतर प्रवेश किया देवव्रत भी उसी ओर जाने लगे तभी उनके कानों में प्रधान सेनापति की तेज ध्वनि पड़ी

युवराज रुक जाइए गंधर्वराज का पीछा ना करें रुक जाइए ! “ यह चेतावनी थी देवव्रत ने सारथी को रुकने का आदेश दिया सेनापति का रथ उनके पास आकर रुका

युवराज ! गन्धर्वों के सीमा में प्रवेश ना करें ! आजतक जिसने भी प्रवेश किया वह जीवित नहीं लौटा आपके प्रवेश करते ही वह मार्ग चट्टानों से बंद हो जाएगा कहते हैं कि गन्धर्वों का राज्य मायावी है वहाँ कोई भी जाकर भ्रमित हो जाता है फिर वे धोखे से उसका वध कर देते हैं हमारी सेना को यह तथ्य पता है अतः वह उनकी सीमा के पास जाकर रुक गयी है आप भी इससे आगे ना जाएँ उनकी पराजय हो चुकी है वे अब वापस नहीं आएंगे

क्रमशः ....
लेखक – राजू रंजन 

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